Thursday, April 21, 2011

साँझ ढले मैं आशाओं के दीप जलाया करता हूँ..



थाम उजाले का दामन
मन ने कुछ सपने देखे थे,
कुछ कलियों की सीपों में
कुछ मोती पुष्प सरीखे थे,

मन उड़ बैठा था पंछी सा
तोड़ समझ की हर बेड़ी,
आशाओं की मदिरा से
अमृत के प्याले फ़ीके थे,

उस छोर सभी जो देखे थे वह दृश्य बनाया करता हूँ
साँझ ढले मैं आशाओं के दीप जलाया करता हूँ.. 

1 comment:

  1. u hi sapane dekh ke hum sabhi ko bhi aap dristant sunsate rahe. aap ko meri oor se es ehsas ke liye dhero sara payar.

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